जब भगवान विष्णु ने तीन पग में सृष्टि को नाप डाला

दैत्य राज बली अपने समय के महानतम राजाओं में से एक रहे । वे हिरण्यकश्यप के परपोते व प्रहलाद के पुत्र विरोचन के पुत्र थे । हालांकि उनका जन्म दैत्य कुल में हुआ था पर फिर भी वे धर्म और सत्य के मार्ग से कभी विचलित नहीं हुए । अपने उपदेशक की सहायता और राय से उन्होंने तीनों लोगों पर अपना आधिपत्य स्थापित किया ।

जब दैत्य राज बली ने इंद्रलोक की राजधानी अमरावती पर कब्जा कर लिया तो देवराज इंद्र चिंतित हो भगवान श्री हरि विष्णु के पास सहायता मांगने गए । श्री हरि विष्णु ने देवराज इंद्र को आश्वासन दिया कि वह उनके इंद्रलोक को उन्हें पुनः सौंप देंगे अतः वे इस विषय में चिंता ना करें ।

इसके कुछ समय पश्चात श्री हरि विष्णु ने माता अदिति और महर्षि कश्यप के यहां जन्म लिया । यह जगत के पालनहार भगवान विष्णु का पांचवा अवतार था जिसे संसार में लोग “वामन अवतार” के नाम से जानते हैं ।

वामन रूप श्री हरि विष्णु ने दैत्य राज बली से दान के रूप में तीन पग भूमि की मांग की । इस पर महाराजा बली ने वचनबद्ध हो बटुक कुमार को तीन पग भूमि दान देना सहज ही स्वीकार कर लिया । जहां महाराज बली इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनसे दान मांगने आए बटुक कुमार और कोई नहीं बल्कि सृष्टि के पालन कर्ता श्री हरि विष्णु है ।

दैत्य गुरु शुक्राचार्य देवताओं द्वारा रचे गए इस मायाजाल को भली-भांति समझ गए और महाराजा बली को दान देने से मना किया । पर अपने वचन के धनी महाराज बली निश्चय कर चुके थे वह वचनबद्ध भी थे । इसलिए उन्होंने बटुक कुमार को उनके पैरों द्वारा तीन पग भूमि नापने के लिए कहा ।

दान को लेकर आश्वस्त होते ही बटुक कुमार ने अपने आकार को बढ़ाना प्रारंभ किया देखते ही देखते क्षण भर में बटुक कुमार का आकार इतना ऊंचा हो गया की सारी सृष्टि भी छोटी लगने लगी । ब्राह्मण कुमार नहीं एक पग में धरती वह दूसरे पग में समस्त स्वर्ग लोक को नाप लिया ऐसे में तीसरे पद के लिए कोई स्थान ना पाकर कर्तव्यनिष्ठ राजा बलि ने ब्राह्मण कुमार से अनुरोध किया कि वे तीसरा पग उनके मस्तक पर रखें । श्री विष्णु, राजा बलि से बेहद प्रसन्न हुए व उन्हें एक समय पर इंद्रलोक के अधिपति इंद्र की गद्दी पर आसीन होने का वरदान दिया ।

इस प्रकार जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु ने अपने पांचवें अवतार के द्वारा देवताओं के स्वर्ग लोक को पुनः प्राप्त कर देवराज इंद्र को सौंप दिया ।

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