पढ़िए पुत्र की जवानी मांगने वाले राजा की कहानी

वैसे तो हिंदू पौराणिक कथाओं में अनेक रोचक प्रसंगों का उल्लेख मिलता है, आज हम पांडवों के पूर्वज राजा ययाति से जुड़ा एक बेहद ही रोचक किस्सा आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं ।

राजा ययाति युद्ध कौशल के धनी थे उन्होंने कभी भी मैदान पर हार का सामना नहीं किया । इसके अतिरिक्त वे बड़े ही दयावान प्रकृति के व देवता और पितरों की पूजा बड़ी निष्ठा के साथ किया करते थे ।

कुछ समय बाद दैत्य गुरु शुक्राचार्य के श्राप के प्रभाव से राजा ययाति कि देह वृद्धावस्था की ओर बड़ी ही तेजी से बढ़ने लगी। राजा की जवानी पूरी तरह से ढल चुकी थी पर उसकी की भोग विलास की लालसा अभी भी तृप्त नहीं हुई थी।

राजा ययाति पांच योग्य और सुंदर पुत्रों के पिता थे। जब राजा अपने भोग विलास की लालसा पर विजय नहीं प्राप्त कर सके तो उन्होंने अपने युवा पुत्रों से मदद मांगी। राजा ने अपने पांचों पुत्रों को बुलाया और कहा की तुममें से जो भी मुझे अपनी जवानी दे मेरी वृद्धावस्था को स्वीकार करेगा वही मेरा उत्तराधिकारी होगा।

अपने पिता के ऐसे वचनों को सुनने के पश्चात राजा के चार ज्येष्ठ पुत्रों ने इस बात पर अपनी असहमति जताई। पर राजा का सबसे छोटा पुत्र पुरू बेहद ही आज्ञाकारी था और उसने सहज ही इस बलिदान को स्वीकार कर लिया। राजा अपने पुत्र पुरू कि निस्वार्थ भाव से बेहद प्रसन्न हुए और उसे गले लगा लिया और बोला मैं थोड़ा भोग विलास कर तुम्हें तुम्हारी युवावस्था लौटा दूंगा।

इसके कुछ पल पश्चात ही राजा ययाति देखते-देखते युवावस्था में आ गए वहीं उनका बेटा पुरू वृद्धावस्था को प्राप्त हो गया। इसके पश्चात जहां पुरू राज्य का कार्यभार संभालने लगे वहीं पुत्र की जवानी मिलने के पश्चात राजा अपनी दोनों पत्नियों के साथ भोग विलास में लिप्त रहने लगे। जब इससे भी राजा की लालसा तृप्त नहीं हुई तो वे यश राज कुबेर के नंदनवन में एक अप्सरा संग कई वर्षों तक आनंद मग्न रहे। इन सब के बावजूद भी राजा की काम इच्छा पूर्ण होने की बजाय बढ़ती ही गई।

राजा ने स्वयं इस बात का अनुभव किया कि कामवासना वह अग्नि है जिसकी लालसा कभी शांत नहीं हो सकती। इस वासना को शांत करना है तो मन पर संयम रखना होगा।

जब राजा का विवेक लौटा तो उन्होंने अपने पुत्र पुरू के पास जाकर उसकी युवावस्था पुनः उसे लौटा दी और तप करने के लिए वन की ओर प्रस्थान कर गए।

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