जानिये कैसे हुई देवी संध्या और कामदेव की उत्पत्ति

एक बार की बात है जगतपिता ब्रह्मा अपनी सभा में थे कि अचानक उनके हृदय से एक बेहद आकर्षक सुंदरी की उत्पत्ति हुई । इससे पहले की जगतपिता ब्रह्मा कुछ समझ पाते इस ही क्रम में उनके हृदय से एक अविश्वसनीय सुंदर नौजवान प्रकट हुआ, जिसके हाथ में धनुष और तूणीर में पुष्पों से लदे हुए बाण थे । इस युवक में अद्भुत शक्ति थी जिसके सहारे वह किसी भी जीव के भीतर अपने बाणों से प्रेम एवं काम की भावनाएं उत्पन्न कर सकता था ।

उत्पत्ति के पश्चात युवक ने अपने सर्जनकर्ता यानी ब्रह्मा जी से आदेश देने को कहा । उसके आकर्षण से प्रभावित जगतपिता ब्रह्मा ने युवक को सभी जीवों को अपने बाणों की शक्ति से प्रेम जाल में डाल देने का आदेश दिया । इस आदेश के साथ ही जगतपिता ने यह भी कहा कि सभी जीव यहाँ तक की देवता गण भी इस बाण के प्रहार से ना बच सकें ।

इस ही शक्ति के कारण इस युवक को आगे चलकर कामदेव और मनमाड़ नाम से भी सम्बोधित किया गया । अपनी शक्ति का परिचय देने के लिए कामदेव ने अपने तूणीर से पुष्पों से लदा बाण निकाला और सहसा ही उसे जगतपिता ब्रह्मा के दरबार में चला दिया । इस बाण के प्रहार से सभा में मौजूद हर पुरुष कामदेव से पूर्व उत्पन्न हुई सुंदरी के यौवन पर मोहित हो उसकी और एकटक देखने लगे ।

जब इस अपमानजनक दृश्य की व्याख्या धर्म द्वारा भगवान शिव तक पहुंची तो वे स्वयं जगतपिता ब्रह्मा की सभा में प्रकट हुए और जगतपिता ब्रह्मा को खूब फटकारा । इस फटकार के चलते जगतपिता ब्रह्मा पसीना-पसीना हो गए और उस ही पसीने से 64 पितृगणों (पूर्वजों) का निर्माण हुआ । पर क्योंकि इन पितृगणों की उत्पाती का कारण देवी संध्या थीं, इसलिए उन्हें इन 64 पितृगणों की माता का स्थान मिला । वहीँ दूसरी और क्योंकि देवी संध्या की उत्पत्ति जगतपिता ब्रह्मा के हृदय से हुई थी इसलिए उन्हें ब्रह्मा की पुत्री और कामदेव की बड़ी बहन का भी दर्जा मिला ।

भगवान शिव द्वारा लताड़े जाने पर जगतपिता ब्रह्मा अपमानित महसूस करने लगे । यह उस अपमान की पीड़ा ही थी कि जगतपिता ब्रह्मा ने कामदेव को इस पूरे घटनाक्रम के लिए कसूरवार मानकर उन्हें भगवान शिव की तीसरी आँख से जलकर राख हो जाने का शाप दे दिया । जगतपिता ब्रह्मा द्वारा ऐसा श्राप मिलने पर कामदेव स्वयं हैरान थे ।

इस पर कामदेव ने भगवन शिव से प्रार्थना की कि उन्होंने तो स्वयं जगतपिता ब्रह्मा के आदेश का पालन कर अपने दायित्व का निर्वहन किया है । हालांकि कामदेव के वक्तव्य में कुछ योग्यता थी लेकिन जगतपिता ब्रह्मा ने तर्क दिया कि कामदेव के रूप में उनका सशक्तिकरण कामुकता या तांडव के दृश्य रचने के लिए नहीं था । अतः कामदेव को अनुशासन, संयम और विनय के दायरों के भीतर ही कार्य करने की आवश्यकता थी । हालांकि कामदेव की श्राप मुक्ति के लिए जगतपिता ब्रह्मा ने कहा की समय आने पर भगवान शिव खुद ही कोई सटीक उपाय निकालेंगे ।

दैवीय संयोग से उसी क्षण प्रजापति दक्ष को पसीना आने लगा और उनके पसीने ने देखते ही देखते एक अविश्वसनीय सुंदरी का रूप ले लिया । इस सुंदरी में ग़ज़ब का आकर्षण था और पहली ही दृष्टि में कामदेव को उससे प्रेम हो गया । प्रजापति दक्ष और भगवान ब्रह्मा की व्यक्त इच्छा से रति नामक उस सुंदरी का मिलन कामदेव से हुआ ।

अपनी उत्पत्ति के समय भगवान शिव के दर्शन करने के बाद, देवी संध्या स्वाभाविक रूप से भगवान शिव की कृपा अर्जित करने के लिए गहन तपस्या करने के लिए प्रेरित हुई।